मकर संक्रांति को खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है. यही वजह है कि इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस मौके पर चावल, काली दाल, नमक, हल्दी, मटर और सब्जियां खासतौर पर फूलगोभी डालकर खिचड़ी बनाई जाती है. दरअसल चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और काली दाल को शनि का. वहीं, हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं. कहते हैं कि खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है. इस दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिती मजबूत होती है.
दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह
मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे. मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे. रोज योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का हल निकालते हुए दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी थी. यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया.
गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला
इसके बाद ही बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रख दिया. झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए. खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है. कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
इतिहास में खिचड़ी
इतिहास में सिर्फ बीरबल की खिचड़ी ही नहीं थी. भारत आने वाले तमाम विदेशी मुसाफिरों ने भी खिचड़ी का जिक्र किया है. दरअसल यह खेतिहर मजदूरों का शाम का खाना हुआ करता था. केटी आचाया की 'डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड' के मुताबिक इब्न बतूता, अब्दुर्र रज्जाक और फ्रांसिस्को प्लेजार्ट ने खिचड़ी के बारे में काफी कुछ लिखा है. 1470 के एक रूसी यात्री अखन्सय निकितिन के मुताबिक उस समय खिचड़ी घोड़ों को भी खिलाई जाती थी. वैसे आयुर्वेद में भी खिचड़ी का जिक्र मिलता है. चरक संहिता के मुताबिक सूर्य के उत्तरायण होने का काल ऊर्जा संचरण का काल है, जिसकी शुरुआत खिचड़ी से होती है.
वहीं मुगल बादशाहों को भी खिचड़ी काफी पसंद थी. अकबर की रसोई में बनने वाली खिचड़ी में दाल, चावल और घी बराबर मात्रा में पड़ता था. वैसे आइने-अकबरी में 7 तरह की खिचड़ी की बात की गई है. खिचड़ी जहांगीर का प्रिय शाकाहारी खाना था. जहांगीर को गुजराती खिचड़ी पसंद थी जिसे लजीजा कहा जाता था और उसमें कई तरह के मसाले और मेवे पड़ते थे. इनके अलावा खिचड़ी को अंग्रेज़ों ने भी अपनाया. उन्होंने उसमें अंडे और मछली मिलाकर केडगेरी नाम का नाश्ता बना डाला. इसके अलावा मिस्र में कुशारी पकाया जाता है जो खिचड़ी से मिलता जुलता है. इब्न बतूता ने भी किशरी का जिक्र किया था. ये सारे नाम खिचड़ी की विकास यात्रा की कहानी की तरफ इशारा करते हैं.
उत्तर प्रदेश में मूंगदाल की खिचड़ी
देश भर में खिचड़ी के कई अलग रूप हैं. तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल कहा जाता है. पोंगल भी एक तरह का पकवान है जिसे चावल, मूंगदाल, दूध और गुड़ डालकर पकाया जाता है. उत्तर प्रदेश में मूंगदाल की खिचड़ी बनाई जाती है. वहीं पश्चिम बंगाल की खिचड़ी में इस मूंग की दाल को भूनकर सुनहरा कर लिया जाता है. बंगाल में दुर्गा पूजा में मां दुर्गा को भोग में खिचड़ी जरूर चढ़ाई जाती है. राजस्थान और गुजरात में बाजरे की खिचड़ी लोकप्रिय है.
हैदराबाद, दिल्ली और भोपाल जैसे शहरों में दलिया और गोश्त को मिलाकर खिचड़ा और हलीम पकता है. वहीं खिचड़ी भगवान जगन्नाथ के 56 भोग में भी शामिल है. मराठी साबूदाने की खिचड़ी का स्वाद नाश्ते के लिए बिलकुल सही रहता है. महाराष्ट्र में झींगा मछली (प्रॉन) के साथ एक खास तरह की खिचड़ी बनती है. गुजरात के भरूच में खिचड़ी के साथ कढ़ी सर्व की जाती है. सर्दी में खूब सारे देसी घी, काली मिर्च और जीरे के साथ बनाई गई खिचड़ी अच्छी लगती है, तो बीमारी से उबरते समय कम घी के साथ पतली खिचड़ी की सलाह दी जाती है.